Sunday, September 27, 2015

एक उलझन है जो




एक उलझन है जो
परेशानी का सबब बनी रहती है
इनसान होकर भी क्यों नहीं हम
पहचान पाते हैं इनसानों को
कुछ रिश्ते तो ऐसे होते होंगे
जहां हर पहचान
पुरानी सी नज़र आती होगी
हम आज इकदूजे की
आँखों की गहराइयों में झांक कर देखें
क्या हम ही वहाँ रहते हैं.....
कल सबेरा सूरज फिर लेके आएगा
फिर से परेशानी का सबब पूछेगा
आज के इतना ही काफी है
तुम हो यहाँ
और मैं भी हूँ यहाँ
ढूँढ़ता हुआ कल फिर बढ़ चलूँगा
एक नया सवेरा .....


©सुरेंद्रपालसिंह  2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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