Sunday, September 27, 2015

एक दिन और ढेर

एक दिन और ढेर
हो गया
जिन्दगी
एक सीढी
और चढ़ गई
कुछ खुशी मिली
कुछ अधूरी रह गई।
यही जीवन है
चलता रहे
चक्र जीवन का
पिसता हुआ इन्सान
भागता हुआ
कभी अदृश्य
कभी साफ तौर पर दिखते
लक्ष्य
का पीछा करता हुआ।
आज नया सवेरा
आया है
दिल फिर
भरमाया है
जागो मेरे प्यारे जागो
अलसायेपन को छोडो
मस्त पवन बह रहा है
बगिया में कोई बुला रहा है
चलो उसका पीछा करो
थोडी दूर ही सही
उसके साथ चलो
थक कर बैठो नहीं
दम भर प्रयास करो
चले चलो चले चलो।
अब कल फिर परसों
की तैयारी करो
कान्हा आने वाला है
अष्टमी को मिलन
हमारा होने वाला है।
चलते रहो चलते रहो।



©सुरेंद्रपालसिंह  2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

No comments:

Post a Comment