Thursday, September 3, 2015

विस्मित हूँ,

कलम से----
30th June, 2015/Kaushambi
विस्मित हूँ,
भयावह हूं,
प्रार्थना करता हूँ,
आज दृष्टि गोचर जो हुआ
पुनः न दिखे,
थाल पूजा का बिखरा न मिले।
थाल पूजा का कभी बिखरा न मिले।
मैं तो नतमस्तक था,
दिन प्रतिदिन नमन करता था,
पुष्प और जल हर रोज चढ़ा आता था,
विश्वास मेरा क्यों टूटा?
भगवन, आपने ऐसा क्या आज कर दिया?
विश्वास टूटता है,
स्वप्न बिखर जाते हैं,
आस्था के प्रश्न उठ जाते हैं,
जीवन ठगा-ठगा सा लगता है,
प्रश्न मेरा है तुझसे, ऐसा क्यों होता है?
पास आओ मेरे,
बैठो यहां पल दो पल,
शून्य में खो जाओ,
देखो कुछ है दिखता?
अधंकार घोर,
अंधकार है भगवन यहाँ,
हे तात,
इसी अंधकार से जीवन फिर उगता है,
जा जीवन जी ले,
जा सब कुछ वह करले,
जो करना है, वह कर ले,
लक्ष्य सभी हासिल जीवन के कर ले।
जा जीवन जी ले।
जा जीवन तू जी ले।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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