Monday, March 16, 2015

समर्पण कर दिया निढ़ाल होकर अपना जान कर......



कलम से ____

भ्रमर मड़ंराता रहा
अधर रसपान को
बचा न पाई मैं
अपने आपको
समर्पण कर दिया
निढ़ाल होकर
अपना जान कर......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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