Saturday, March 7, 2015

झोंपड़ी के बाहर और भीतर रात भर बरसात होती रही

कलम से____
झोंपड़ी
के बाहर और भीतर
रात भर 
बरसात होती रही
खाट कभी इधर
कभी ऊधर खींचीं
रजाई बिस्तर
सब हैं भीगे भीगे
फाल्गुन में यह कैसा
मौसम हो चला
ओलों से ड़र
लग रहा है
फसल है तैयार खड़ी
होगा क्या नज़र तूने
अगर टेड़ी करी
काम सब बिगड़ जाएंगे
रास्ते पर जो आए थे
खेल सब खत्म हो जाएंगे
कृपादृष्टि बनाए रहो
बस तुम और न बरसो
हमें चैन से रहने दो
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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