Thursday, February 5, 2015

अंतस की पीर न कोई समझा है और न कोई समझेगा शीष मेरा भी व्यर्थ न झुकेगा ....

कलम से____
हाज़िरी अभी भी कम है
मोह रज़ाई का छूटा नहीं है
आती जाती सरदी से 
लोगां भीतर घर में ही हैं
दिन तीन चार और लगेंगे
हाज़िरी पार्क में तभी बढ़ेगी
दीन दुनियां तबतक ऐसे ही चलेगी....
भगवान के यहाँ भी भीड़ में
कुछ देर और लगेगी
फूल चढ़ाने वालों की कमी
उसे भी खटकेगी
पत्थरदिल देवता की आँख
फिर भी न पिघलेगी
भक्तों की भीड़ लगी रहेगी....
अंधों को भी कोई
समझा पाया तम का
होता है कैसा साया
यह तो सूरज है जो
प्रकाश लाता है
जीवन सबका महका जाता है
अंतस की पीर न कोई
समझा है और न कोई समझेगा
शीष मेरा भी व्यर्थ न झुकेगा ....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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  • Ram Saran Singh महोदय! " भगवान के यहाँ भी में कुछ देर और लगेगी,,,,,,,पत्थर दिल देवता की ,,,,,,," अंध भक्ति के जकड़न से बाहर निकलने को प्रेरित करती रचना मुझे तो बहुत बढ़िया लगी । " शीष मेरा भी व्यर्थ न झुकेगा " सटीक । धन्यवाद ।
    10 hrs · Unlike · 2
  • Sp Tripathi जाड़ा कुछ ज़्यादा ही जम गया है । जमे हुये को उठने मे भी वक़्त लगता है ।जाड़ा उठते उठते फिर बैठ जा रहा है ।कोशिश जाने की कर कहा है पर असफल हो रहा है ।दिल्ली वाले इलेक्शन मे लगे है , कौन ज़ोर इधर लगाए ।
    8 hrs · Unlike · 2
  • Rajan Varma अंधों की इस अँधाधुंध दौड़ में,
    किसको रोकें, किसको समझायें;
    कहाँ अौर क्यों दौड़े चले जाते हो,

    कोई मक़सद है या देखा-देखी की भागम्-भाग का ये मेला है,
    अंतस की पीर है- न कोई समझा है न समझने का प्रयास है;
    8 hrs · Unlike · 4
  • S.p. Singh राजन बहुत सुन्दर लिखा है आपने। बधाई।
    8 hrs · Like · 1
  • Dinesh Singh भगवान के यहाँ भी भीड़ में
    कुछ देर और लगेगी
    फूल चढ़ाने वालों की कमी

    उसे भी खटकेगी
    पत्थरदिल देवता की आँख
    फिर भी न पिघलेगी
    भक्तों की भीड़ लगी रहेगी..वाह बहुत ही खूबसूरत लिखा है सर
    8 hrs · Unlike · 1
  • S.p. Singh धन्यवाद दिनेश।
    7 hrs · Unlike · 1
  • SN Gupta बहुत सुंदर
    4 hrs · Unlike · 1
  • Puneet Chowdhary No doubt your excellence in poetry makes you kavi gyata
    2 hrs · Unlike · 1

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