एक उलझन है जो
परेशानी का सबब बनी रहती है
इनसान होकर भी क्यों नहीं हम
पहचान पाते हैं इनसानों को
कुछ रिश्ते तो ऐसे होते होंगे
जहां हर पहचान
पुरानी सी नज़र आती होगी
हम आज इकदूजे की
आँखों की गहराइयों में झांक कर देखें
क्या हम ही वहाँ रहते हैं.....
परेशानी का सबब बनी रहती है
इनसान होकर भी क्यों नहीं हम
पहचान पाते हैं इनसानों को
कुछ रिश्ते तो ऐसे होते होंगे
जहां हर पहचान
पुरानी सी नज़र आती होगी
हम आज इकदूजे की
आँखों की गहराइयों में झांक कर देखें
क्या हम ही वहाँ रहते हैं.....
कल सबेरा सूरज फिर लेके आएगा
फिर से परेशानी का सबब पूछेगा
आज के इतना ही काफी है
तुम हो यहाँ
और मैं भी हूँ यहाँ
ढूँढ़ता हुआ कल फिर बढ़ चलूँगा
एक नया सवेरा .....
फिर से परेशानी का सबब पूछेगा
आज के इतना ही काफी है
तुम हो यहाँ
और मैं भी हूँ यहाँ
ढूँढ़ता हुआ कल फिर बढ़ चलूँगा
एक नया सवेरा .....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot. in/
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