कलम से_____
ताउम्र काटा किये फसल ख़ून की
नफ़रत के बीज कुछ वो ऐसे बो गये।
बेगुनाह कैद में रहे जुल्म किये बगैर
दाग़ किसके आके समंदर धो गये।
देख कर मज़बूरी इन्सान की
शाम से ही पहले परिन्दे सो गये।
ढूँढा किये उन्हें दिन-रात परीशां हो गये
मंजिल मिली तो रास्ते खो गये।
यादें अनगिनत साथ यूँही चल पड़ीं
एक हम हीं थे जो बीच में राह भूल गये।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
ताउम्र काटा किये फसल ख़ून की
नफ़रत के बीज कुछ वो ऐसे बो गये।
बेगुनाह कैद में रहे जुल्म किये बगैर
दाग़ किसके आके समंदर धो गये।
देख कर मज़बूरी इन्सान की
शाम से ही पहले परिन्दे सो गये।
ढूँढा किये उन्हें दिन-रात परीशां हो गये
मंजिल मिली तो रास्ते खो गये।
यादें अनगिनत साथ यूँही चल पड़ीं
एक हम हीं थे जो बीच में राह भूल गये।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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