जुबां खामोश ही रहेगी
आँखो में गर नमी होगी
यही एक दास्तां मेरी
बस ए जिदंगी होगी ।
आँखो में गर नमी होगी
यही एक दास्तां मेरी
बस ए जिदंगी होगी ।
चाँद मुंडेर पर बैठा हँसता है रहता
खिड़की के उस पार ही लटका है रहता
चाँदनी हौले हौले आँगन में आज आई है
तनहाई जीने से उतर फिर आई है
कैसे कह दूँ कि तू मुझे याद नहीं आई है......
खिड़की के उस पार ही लटका है रहता
चाँदनी हौले हौले आँगन में आज आई है
तनहाई जीने से उतर फिर आई है
कैसे कह दूँ कि तू मुझे याद नहीं आई है......
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