Thursday, November 13, 2014

आज मौसम खुल गया और पार्क में घूमने जाने से न रोक पाया।वहां जो बन गया वह आपके समक्ष प्रस्तुत है

कलम से_____
कल शाम से मस्त मस्त हवा क्या चली
जो छिपी खड़ी थी कहीं अचानक सामने आगई
कहने लगी उतार डालो अपना लखनउआ लिवास
लग अगर गई मैं पड़ जाओगे बिस्तर पर ले लिहाफ
लिफाफा बने रहने के दिन हवा हो गये
गर्म कपड़े पहनने के दिन अब आ गए।
स्माग भी हवाओं के बहने से छट गया
पार्क में घूमने का मौसम फिर से आगया
हो जाया करेगी अब उनसे मुलाकात
जिनसे मिले बिना चलता नहीं दिमाग।
हमारे कुछ दोस्त यूँही जला करते हैं
मार्केट में रेट हमारा पूछा करते हैं
कहते हैं उम्र हो गई है चाहने वाले अभी भी इनके हैं
न जाने कौन सी बात है जिस पर फिदा रहते हैं।
(आज मौसम खुल गया और पार्क में घूमने जाने से न रोक पाया।वहां जो बन गया वह आपके समक्ष प्रस्तुत है)
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
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