कलम से_____
सूरज देर से निकले
तो क्या
यहाँ आना जाना
सुबह से देर रात
तक लगा रहता है
भीड़ है उतरने वालों की
चढ़ने वाले भी कम नहीं
बस स्टॉप पर
दो पल के लिए रुकती है
फिर दूसरी आ जाती
जिन्दगी अपनी रफ्तार
यूँही चलती रहती है
तो क्या
यहाँ आना जाना
सुबह से देर रात
तक लगा रहता है
भीड़ है उतरने वालों की
चढ़ने वाले भी कम नहीं
बस स्टॉप पर
दो पल के लिए रुकती है
फिर दूसरी आ जाती
जिन्दगी अपनी रफ्तार
यूँही चलती रहती है
न जाने कितने
आते जाते कितने दिल मिलते हैं
कितनों के टूटे जाते हैं
सपने यहाँ बनते है
बिखर जाते हैं
आते जाते कितने दिल मिलते हैं
कितनों के टूटे जाते हैं
सपने यहाँ बनते है
बिखर जाते हैं
एक बाबा यहीं
सोता है सरद रातों में
ठिठुरा करता है
तरस खा कभी कोई कुछ दे देता है
इस तरह गुजारा
उसका होता है
बहुत सपने संजोए आया था
गांव अपना छोड़
काम करूँगा आगे बढूँगा
एक भी स्वप्न पूरा न हुआ
चलती फिरती लाश हो गया
न जाने कब आस पूरी होगी
जो अधूरी सी है अधूरी ही रहेगी
अबके जाड़ा न कटेगा
बस स्टॉप से ही
आखिरी टिकट कटेगा
फर्क न कोई भी महसूस करेगा
कोई आये या जाये
जीवन है बस ऐसे ही चला करेगा
सोता है सरद रातों में
ठिठुरा करता है
तरस खा कभी कोई कुछ दे देता है
इस तरह गुजारा
उसका होता है
बहुत सपने संजोए आया था
गांव अपना छोड़
काम करूँगा आगे बढूँगा
एक भी स्वप्न पूरा न हुआ
चलती फिरती लाश हो गया
न जाने कब आस पूरी होगी
जो अधूरी सी है अधूरी ही रहेगी
अबके जाड़ा न कटेगा
बस स्टॉप से ही
आखिरी टिकट कटेगा
फर्क न कोई भी महसूस करेगा
कोई आये या जाये
जीवन है बस ऐसे ही चला करेगा
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
No comments:
Post a Comment