कलम से_____
"पिंजरे में कैद मैना"
आजकल की जिंदगी
से भागना चाहो
फिर भी भाग नहीं सकते
पंख हैं नौंच दिए गए
बंद हैं आप
पिंजरे में मैना की तरह।
से भागना चाहो
फिर भी भाग नहीं सकते
पंख हैं नौंच दिए गए
बंद हैं आप
पिंजरे में मैना की तरह।
दर्द का अहसास होता अगर
एक बादशाह
यूँ न करता बंद
दूसरे बादशाह को,
मुसम्मन बुर्ज से तकते तकते
थका जो नहीं
अपने बनाये इस्तकबाल को
ताज को मुमताज महल की याद को
बंद था कोई तब भी
बंद है कोई आज भी
पिंजरे में मैना की तरह।
एक बादशाह
यूँ न करता बंद
दूसरे बादशाह को,
मुसम्मन बुर्ज से तकते तकते
थका जो नहीं
अपने बनाये इस्तकबाल को
ताज को मुमताज महल की याद को
बंद था कोई तब भी
बंद है कोई आज भी
पिंजरे में मैना की तरह।
रहता हूँ, कहने को
बहुमंजिला इमारत में
आसमां को छूते हुए
खुदा के करीब
ज़मीन से दूर बहुत दूर
जो पहले ही कहीं छूट गई
मिलेगी न जाने फिर कभी
या शायद कभी भी नहीं।
बहुमंजिला इमारत में
आसमां को छूते हुए
खुदा के करीब
ज़मीन से दूर बहुत दूर
जो पहले ही कहीं छूट गई
मिलेगी न जाने फिर कभी
या शायद कभी भी नहीं।
यही है जिन्दगी, यहाँ
बंद, पिंजरे में मैना की तरह।
बंद, पिंजरे में मैना की तरह।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
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