कलम से____
कितनी फुर्सत में इन्सान रहता था
आराम से उठता था
खाता था पीता था
ऐसी भागदौड न थी
जो आज देखने को मिलती है
अपनी सामाजिक और पारिवारिक
दोनों जिम्मेदारियों का निर्वहन
बड़े आराम से करता था
मिलना जुलना सभी से होता रहता था।
आराम से उठता था
खाता था पीता था
ऐसी भागदौड न थी
जो आज देखने को मिलती है
अपनी सामाजिक और पारिवारिक
दोनों जिम्मेदारियों का निर्वहन
बड़े आराम से करता था
मिलना जुलना सभी से होता रहता था।
याद है मुझे, हमारे घर उन्नीससौ पचास के दशक से ही
हिन्दुस्तान अखबार आया करता था
बाबूजी दिन में कम से कम
दो तीन बार पढ़ जाया करते थे
खबरों पर अपने मित्रों से गुफ्तगू भी करते थे
तब घर में हमारी माँ कुछ नहीं कहतीं थीं
आज आप अखबार पूरा भी पढ़ नहीं पाते हैं
इल्जाम सर यह रहता है
कि दिन भर अखबार ही पढते रहोगे
कुछ घर की भी चिंता है
कभी यह पूछा है कि घर यह कैसे चलता है
यह कहानी हर घर की है
कहीं सीधी, कहीं टेड़ी है।
हिन्दुस्तान अखबार आया करता था
बाबूजी दिन में कम से कम
दो तीन बार पढ़ जाया करते थे
खबरों पर अपने मित्रों से गुफ्तगू भी करते थे
तब घर में हमारी माँ कुछ नहीं कहतीं थीं
आज आप अखबार पूरा भी पढ़ नहीं पाते हैं
इल्जाम सर यह रहता है
कि दिन भर अखबार ही पढते रहोगे
कुछ घर की भी चिंता है
कभी यह पूछा है कि घर यह कैसे चलता है
यह कहानी हर घर की है
कहीं सीधी, कहीं टेड़ी है।
आजकल के बच्चे तो बच्चे
अब तो बूढे भी दिन भर
फेसबुक और मोबाइल से चिपके रहते हैं
घरवाले यह देख कर नाराज होते हैं
अक्सर कहते हैं
यह भी कोई जिन्दगी है।
अब तो बूढे भी दिन भर
फेसबुक और मोबाइल से चिपके रहते हैं
घरवाले यह देख कर नाराज होते हैं
अक्सर कहते हैं
यह भी कोई जिन्दगी है।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//