Monday, June 8, 2015

...आग धधकती रहे........

कलम से....
........आग धधकती रहे........
बटलोई की बनी उढ़द की दाल,
देशी घी मे लगा हींग का छौंक,
चूल्हे पर सिकी फूली-फूली रोटी,
अरहर की सूखी,
लकडियों की,
धधकती आग जलती रहे और,
आग कम पड़ने लगे,
तो फूँकनी से फूँकना,
अम्मा की आँखो का धुआँ से पिराना,
मुछे याद है,
चूल्हे की आग धधकती रहे,
याद है, मुछे सब याद है ।
आग कोई सीने में धधकती रहे,
मुझे याद है ।
माँ तो चली गयी,
उसको भी तो कर दिया था,
आग के हवाले,
धधकती आग के हवाले,
धधकती आग सीने आज भी है,
याद उसकी आती रहे,
मुझे याद है,
आग कोई सीने में है जो धधकती रहे,
मुछे याद है,
मुछे याद है ।
(हम लोग गाँव, गर्मी की छुट्टियों मे ही जा पाते और जितने दिन भी वहाँ रहते, खूब मौज करते थे।
थोड़ा-बहुत उस गुजरे वक्त का जो याद है, उसे ही पिरोया है । आप सभी को अच्छी लगे तो मै धन्य समझूँगा।
ग्रामीण अंचल की बातें है, जिस किसी ने इन्हें जिया है, उनको पसंद आऐगा।)
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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  • S.p. Singh धन्यवाद डाक्टर साहब।
  • Rajan Varma आग ठँडी करती है पेट की धधकती आग,
    आग चिता की शान्त करती है हवस की आग;
    तासीर तो वही है- उपयोग अलग;
  • Yogendra Bhatnagar ab to guzre vakt ki yaad bhar rah gayee hai jo kabhee laut kar nahee mil sakta. han yadon ke sahare jiya to ja sakta hai. rachna ati sunder hai ma kee yadon me jeevit rakh kar hamari generation hi chal rahee hai. nayee generation to jeete jee ma ko ghar se be ghar kar rahee hai.
  • S.p. Singh बिल्कुल सही कहा है।
  • Ram Saran Singh राजन सर की टिप्पणी बढ़िया लगी । आग यानि ऊर्जा ही जीवन है । चाहे पेट की आग हो या दिल की आग हो, मुहब्बत की आग हो अथवा ईर्ष्या की आग । सब कुछ इसी से पैदा होकर इसी में समा जाता है । बढ़िया चिंतन धारा ।
  • Harihar Singh बहुत सुन्दर।लाजबाब
  • S.p. Singh कभी कभी बचपन में लौट जाना अच्छा लगता है
  • Madhvi Srivastava very beautiful
  • Mohammed Mobin सिंह साहब यू आग़ भड़काना ठीक नहीं . एक बार गाँव जाने की धुन लग जाती है तो कोई माई का लाल नहीं रोक सकता . जो मोहब्बत गाँव की मिट्टी से है वो जीते जी दूसरे से नहीं हो सकता . गाँव के पोखरे, ताल, खेत, मिट्टी का घर ( अब तो मिट्टी का घर रहा नहीं ) बरबस अपनी ओर खीचते हैं . वैसे अब जिम्मेदारियां मौक्का कम ही देती हैं . "आग़ धधक रही है कम नहीं हुई ".
  • S.p. Singh बहुत बहुत शुक्रिया मोबिन भाई वाकई अब वह सब मीठे सपने की तरह ही रह गया है।
  • Balbir Singh Sir, chahe apne khayalon mein hi sahi aaj lakdi ki aanch pe bani daal aur roti ka swad aa gaya.
  • Ajai Kumar Khare Nice......bhuli bisri yaden.....bahut kuch kah gaya...

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