Friday, April 3, 2015

हो गया है ये सब व्यापार।


कलम से____
बात जब जब
मैं करूँ
व्यापार की
कुछ लेने की
कुछ देने की
कुछ खरीदने की
कुछ बेचने की
.........
..............
.................
हर बार
बार-बार
यह दिल की
बात क्यों
बन जाती है?
कभी देने की
कभी लेने की
बात बनते बनते
क्यों बिगड़ जाती है?
प्यार, प्रेम, love
दिल-बिल, प्यार-व्या
हो गया है ये सब व्यापार।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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