Monday, April 13, 2015

कौन सोता है रात को





इस काव्य श्रंखला को आगे बढ़ाते हुये मैं आज अपनी बात रखता हूँ। कल दिनांक 11 अप्रैल के लिए मैं अपने परम मित्र मुकेश सिहांनिया जी को अपनी रचना रखने को आहुत करता हूँ।वह अगले चार दिनों तक रचनायें आपकी सेवा में लेकर आयेंगे।
कलम से____
कौन सोता है
रात को
रात कहती है
जागता रह मेरे लिए
करीब आ पास आ
अंधेरों के परे भी
एक दुनियां है
चमचमाती हुई
चमकते तारों की
जुगनुओं सी
दिखती है
आकाशगंगा।
एक दीप जलाकर
बैठा हूँ मैं
अंधकार है
जो मेरे आसपास
मेरे भीतर
उसे मिटाने के लिए।
रात ऐसे ही
गुजर गई
सुबह तक
तेरे इंतजार में....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with मुकेश सिंघानिया.

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