Friday, April 3, 2015

अशोक चक्रवर्ती देखते देखते

कलम से____
अशोक चक्रवर्ती
देखते देखते
विचार मन में
अचानक उठा
कैसी कैसी व्यवस्था
राज्य सूचना
जानकारी के
लिए करता था
गुप्तचरों की जमात
आमात्य और आचार्य
राजा स्वयं भी
भेष बदल कर
निकाला करता था
प्रजा के हाल जानने हेतु
तब जाकर कहीं
एक सुदृढ
न्याय व्यवस्था
बन पाती थी।
यही सुना था
राम राज्य में
ऐसा ही
होता था।
यही अकबरी
दरबार में भी।
अंग्रेजी साम्राज्य में
भी शुरूआती दौर में
कुछ ऐसा ही था
शनैः शनैः
नया रूप
पनपा न्यायालय
बन गये
सूचना के क्षेत्र में
क्रांति आ गई
राजा के स्थान पर
हुक्मरान आ गये,
पेड सरवैन्ट,
आई टी ने तो
कमाल कर दिया
उस पर तुर्रा
जन प्रतिनिधि
और जागरूक
जनता
सभी मिल लड़ने लगे
अपने अपने स्वार्थ
की लड़ाइयां
बेचारी जनता
हार गई, टूट गई
बोझ तले दब गई
आवाज समाजवाद की
कभी साम्यवाद से
पूंजीवाद से
कभी टोपी सुफैद
कभी हरी
कभी लाल हो गई
कभी वो 'आप' की हो गई
और अक्सर सरेआम
बाजार बिकती रही
नाज़ करते थे जिस पर
वही मुन्नी बदनाम हो गई।
हालात दिन ब दिन
बद से बदतर हो गये
करे क्या अब कोई
समझ के परे हो गये।
प्रजा दरख्वास्त
लेकर है खड़ी
सूचनाओं की
झड़ी है लगी
कार्यवाही कब होगी
बस इंतजार में
हाथ जोड़े है खड़ी।
दारू की दुकान
या हो वो राशन की
लाइन होती ही
जा रही लंबी
पब्लिक परेशान है
आस में बस खड़ी है।
आप फेसबुक पर
कुछ भी लिख दो
हुक्मरानों तक
पहुँचा दो
फिर भी कुछ
नहीं होगा
जो भाग्य में
बदा है, वही होगा।
फिर कोई देवता
आयेगा
देखो भला शायद तब ही
कुछ हो पायेगा.....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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  • Ajay Kr Misra Prachin kaal aur adhunik kaal me rajya sanchalan ki bahut sunder vishleshan prastut kiya hai, aapne.
    Ati sunder abhivaykti, sir.
  • Rajan Varma Feedback के ज़रिये ही corrective action लेकर फ़िर से गाड़ी को पटरी पर लाना संभव हो पाता है- तभी ये closed-loop control system कहलाता है; पर अगर feedback system ही कमजोर हो या किसी स्वार्थ के चलते कोई उसे sabotage करके ग़लत feedback को सही बना कर ऊपर भेज रहा हो तो- प्रणाली कभी ठीक हो ही नहीं सकती; यहाँ तो सारे ही चोर-चोर मौसेरे भाई हैं- कोई कम तो कोई ज़्यादा- at the end of the day- it is the common-man tax-payer who is paying by the nose- for the luxuries of the parliamentarians who come to the Parliament just to create ruckus- and just for-the-sake-of-it;
  • S.p. Singh I think you're right. Their commitment is towards their political masters and not the people.
  • Suresh Kumar Rajan verma ji..ye politician isliye koi action nahi lete kyonki budhijeevi to facebook per hi gussa dikha ke itishree kar lete hai.........koi nukkad sabhaye nahi........koi social group nahi ......NGOs apni dihaadi banaane me lage hain.........politician ko koi resistance to dikhta nahi .....communist bhi sust ho gaye hain.......kahin se koi ross parkat nahi hota..........jo bhi hota hai.public accept kar leti hai........onion 80 Rs. per kg hai.....or sabhi dukaano per mil rahaa hai.........hum phir bhi khareed rahe hain..........
  • Rajan Varma सही कह रहे हैं सुरेश कुमार जी- आम आदमी, नौकरी पेशा आदमी को दो-वक्त की रोटी की दौड़ से ही फुरसत कहाँ मिल पाती है कि इन पाजियों के चक्कर में चक्का जाम करके अपनी दिहाड़ी भी गंवाये अौर जनता को भी परेशान करे- लंबे-लंबे जामों से; हासिल ultimately कुछ नहीं होना है- उसके गला फ़ाड़ने से सरकार नहीं तो विपक्ष- किसी एक को ही फ़ायदा होना है- ग़रीब की थाली फ़िर भी खाली ही रहनी है;
  • Suresh Kumar Yani Hum jo bhi karen fayada kisi chor ka hi hoga...........what shall i do...
  • Ram Saran Singh महोदय । बहुत सटीक चित्रण कर दिया है आपने । हर व्यवस्था के पीछे । जन कल्याण का भाव होता है परंतु जब व्यवस्था की निगरानी करने वाला ही नालायक, नाकाम, नाफर्मान हो जाए तो क्या कर सकते हैं । हर व्यवस्था में कालांतर में शैथिल्य आ जाता है और तब पतन का दौर शुरू होता है । एकतंत्र, राजतंत्र, भीडतंत्र के बाद लोकतंत्र आया पर वह भी फ़ेल हो रहा है ।
  • Balbir Singh Suna tha ki chaudhari Charan singh ex chief minister ke samai bhi charan singh issi taraha bhase badal kar janta ke beech ja kar asliyat ka pata lagata the(UP )

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