कुछ मेरी, कुछ तेरी !
Monday, March 16, 2015
उलझन में उलझ के रह जाता हूँ,
कलम से____
उलझन में उलझ के रह जाता हूँ,
जब जब ऊलझनें,
सुलझाने की कोशिश करता हूँ, मैं !!!
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with
Puneet Chowdhary
.
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Ajay Jain
,
Devanand Bachchan
,
Ajay Kr Misra
and
22 others
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Deobansh Dubey
बहुत बढ़िया!
March 11 at 7:57am
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BN Pandey
Sir yahi to Hai Zivan- Chakr.. Kabhi Sulajhataa hi Nahi... Phir Bhi Insaan Moh me fus Ker 03- 05 Karataa rahataa Hai....Jai Shri Radhe...
March 11 at 8:11am
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S.p. Singh
राधे राधे।
March 11 at 8:13am
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Satya Prakash Singh
चकर घिन्नी हो जाता हूँ
March 11 at 8:47am
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Ram Saran Singh
हाँ महोदय । यह धागे की गुत्थी जैसी पहेली है । जितनी कोशिश सुलझाने की कीजाए उतनी उलझती जाती है । पर धैर्य की ज़रूरत होती है और गाँठ खुलती ज़रूर है । बहुत व्यावहारिक बात है महोदय धन्यवाद ।
March 11 at 9:29am
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Rp Singh
sundar
March 11 at 10:34am
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Dinesh Singh
उलझन में उलझ के रह जाता हूँ,
जब जब ऊलझनें,
सुलझाने की कोशिश करता हूँ, मैं ---बहुत ही सुंदर
March 11 at 10:38am
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Ajay Kr Misra
Nice presentation, Sir.
Bahut khoob.
March 11 at 3:34pm
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