Tuesday, February 17, 2015

मैंने भी बहारें देखी है चंद रोज़ का करो इतंज़ार

कलम से____
पतझड़ की हवा कुछ ऐसी चली
मैं तो खाली खाली सा हो गया
साथ में है जो यहाँ पेड़ खड़ा
हरा भरा मुस्कराता रह गया।
कहा उससे,
मैंने भी बहारें देखी है
चंद रोज़ का करो इतंज़ार
ऋतु बसंत मुझ पर भी
मेहरबान होने वाली है।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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  • Ajay Kr Misra Badalte mausam ka bahut sunder chitran kiya hai aapne.
    Khoobsurat prastuti.
  • Rajan Varma रुँड-मँड पेड़ अौर अपने खिचड़ी बाल, देख मंद-मंद मुस्काया,
    तुझ पर तो फ़िर आ जायेगी हरियाली, पर मेरा क्या होगा सांभा?
    राधे राधे
  • Ram Saran Singh महोदय समय चक्र चलता रहेगा । हरापन, सूखापन जीवन के क्रम हैं । बहुत बढ़िया चिंतन । विगत जीवन और आने वाले कल का संकेत है । धन्यवाद ।
  • S.p. Singh अपने सिर के ऊपर से उड़ गये हैं बाकी बचे खुचे खिचड़ी हो गये हैं। अब तो जमाने से हम कह सकते हैं कि यह बाल धूप में सुफैद नहीं किए हैं एक लंबे अरसे का अनुभव लिए साथ चलते हैं। हाँ एक बात और अब जब लोग अंकल कह कर पुकारते हैं तो अच्छा लगता है।
  • Lata Yadav सुप्रभात!जय श्रीकृष्ण!!आपका दिन मधुर एवं मंगलमय हो!!!
  • Puneet Chowdhary Dardnak aur asardar

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