कलम से____
गाँव के घर के
आंगन में
अबकी बार
फिर से
गौरइया दिखी
मन मेरा दूर कहीं
निकल गया
बचपन
के दिनों में
खो गया...
आंगन में
अबकी बार
फिर से
गौरइया दिखी
मन मेरा दूर कहीं
निकल गया
बचपन
के दिनों में
खो गया...
मौसी भाग कर
सूप से ढ़क
से गौरइया पकड़ हैं लेती
माँ के पास लाती
मिलकर दोनों
आल्ता से
गौरइया को
गुलाबी रंग देतीं
फिर से आजाद
उसे कर देतीं
फुर्र से गौरइया
आंगन की मुड़ेंर पर
इधर उधर कूदा करती
फिर तो वह
अक्सर ही दिख जाती
कभी यहाँ
कभी वहाँ
घर के किसी कोने में
दाना चुगते हुये
मन को लुभाती रहती ...
सूप से ढ़क
से गौरइया पकड़ हैं लेती
माँ के पास लाती
मिलकर दोनों
आल्ता से
गौरइया को
गुलाबी रंग देतीं
फिर से आजाद
उसे कर देतीं
फुर्र से गौरइया
आंगन की मुड़ेंर पर
इधर उधर कूदा करती
फिर तो वह
अक्सर ही दिख जाती
कभी यहाँ
कभी वहाँ
घर के किसी कोने में
दाना चुगते हुये
मन को लुभाती रहती ...
काश मैं भी
ऐसा दोबारा कर पाता
गौरइया को आल्ता से रंग पाता
माँ मौसी ने
जो किया उसे
मैं भी जी पाता
गौरइया भी अब
यदाकदा ही दिखती है
माँ और मौसी की तो
बस याद ही बसती है.....
ऐसा दोबारा कर पाता
गौरइया को आल्ता से रंग पाता
माँ मौसी ने
जो किया उसे
मैं भी जी पाता
गौरइया भी अब
यदाकदा ही दिखती है
माँ और मौसी की तो
बस याद ही बसती है.....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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