कलम से____
अबके गाँव में
नहर किनारे घूमते हुए
फिर से बचपन जी लिया
मन ही मन
पुल के ऊपर से कूदना
दूर कहीं जाकर निकलना
वो पानी को बालों से छिटकना
वो हँसना हँसाना
वो रोना रुलाना
भवँर में फँसी जिदंगी का छटपटाना
लहरों के साथ दूर तक चले जाना
सब कुछ जी लिया
अब चल ए मन
लौट के फिर घर को है चलना।
नहर किनारे घूमते हुए
फिर से बचपन जी लिया
मन ही मन
पुल के ऊपर से कूदना
दूर कहीं जाकर निकलना
वो पानी को बालों से छिटकना
वो हँसना हँसाना
वो रोना रुलाना
भवँर में फँसी जिदंगी का छटपटाना
लहरों के साथ दूर तक चले जाना
सब कुछ जी लिया
अब चल ए मन
लौट के फिर घर को है चलना।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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