कलम से____
5th May, 2015/ Kaushambi
हर रात चाँद
नदिया में उतर आता है
मन को दूर कहीं ले जाता है....
लगता है जैसे
कोई मल्लाह नदी के साज पे गीत गाता है,
हवाऔं के झकोलौं पे तुम्हारा शरीर मेरी बाँहों में झूल जाता है,
कुछ ऐसा ताना-बाना ख्यालात में उभरता जाता है ।
नदिया में उतर आता है
मन को दूर कहीं ले जाता है....
लगता है जैसे
कोई मल्लाह नदी के साज पे गीत गाता है,
हवाऔं के झकोलौं पे तुम्हारा शरीर मेरी बाँहों में झूल जाता है,
कुछ ऐसा ताना-बाना ख्यालात में उभरता जाता है ।
नदिया के इस पार.....
एक गुज़रा हुआ ज़माना है,
जहाँ जिंदगी रफ्ता-रफ्ता चलती रहती है,
सुकून है फिजाऔं में मस्ती है,
भगदड़ से दूर है जो मोहब्बत,
हरपल जिंदा जो रहती है,
लगता है जिंदगी बस यहीं बसती और रहती है।
जहाँ जिंदगी रफ्ता-रफ्ता चलती रहती है,
सुकून है फिजाऔं में मस्ती है,
भगदड़ से दूर है जो मोहब्बत,
हरपल जिंदा जो रहती है,
लगता है जिंदगी बस यहीं बसती और रहती है।
नदिया के उस पार.....
कुछ नया सा हो रहा है
एक शहर नया बस रहा है
नये लोगों के लिए
हर चीज नयी होगी
ऐसा लग रहा है,
चौड़ी-चौड़ी सड़कें,
ऊँचे-ऊँचे बंगले,
सजे-धजे रौशन बाज़ार,
सब कुछ तो नया नया सा है,
कहीं पर किसी का कुछ लगता है
जो खो गया है,
सब बिकता है
सब मिलता है,
बस एक मोहब्बत भरा दिल नहीं मिलता है।
एक शहर नया बस रहा है
नये लोगों के लिए
हर चीज नयी होगी
ऐसा लग रहा है,
चौड़ी-चौड़ी सड़कें,
ऊँचे-ऊँचे बंगले,
सजे-धजे रौशन बाज़ार,
सब कुछ तो नया नया सा है,
कहीं पर किसी का कुछ लगता है
जो खो गया है,
सब बिकता है
सब मिलता है,
बस एक मोहब्बत भरा दिल नहीं मिलता है।
नदिया के इस पार,
नदिया के उस पार,
लोगों का इक जहां बस रहा है।
नदिया के उस पार,
लोगों का इक जहां बस रहा है।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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