कलम से____
मैंने कब तुझसे कहा तू मुझे महल अटारी दे दे,
ख्वाहिश बस इतनी सी थी मेरे हिस्से की चादर मुझे देदे,
पीने की हसरत हो जब जवां तो मेरा सागर मुझे देदे,
बैठे रहो सामने तुम, मौला मेरी इतनी दुआ तू कुबूल करले।
ख्वाहिश बस इतनी सी थी मेरे हिस्से की चादर मुझे देदे,
पीने की हसरत हो जब जवां तो मेरा सागर मुझे देदे,
बैठे रहो सामने तुम, मौला मेरी इतनी दुआ तू कुबूल करले।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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