इस काव्य श्रंखला को आगे बढ़ाते हुये मैं आज अपनी बात रखता हूँ। कल दिनांक 12 अप्रैल के लिए मैं अपने परम मित्र आशीष कैलाश महादेव जी को अपनी रचना प्रस्तुत करने को आहुत करता हूँ।वह अगले चार दिनों तक रचनायें आपकी सेवा में लेकर आयेंगे।
कलम से____
11th April
Kaushambi
Kaushambi
ये शाम अधूरी है
ये ज़ाम अधूरा है
तुमसे दिल की बात अधूरी है
ये चाँद अधूरा है
ये रात अधूरी है
मचलते जज्बात अधूरे हैं
तरसते ख्वाब अधूरे हैं
तड़पती तन्हाई अधूरी है
दिल की ख्वाहिशें अधूरी है
ये जुस्तजु अधूरी है
उमड़ते अरमान अधूरे हैं
पैगामे-मोहब्बत अधूरी है
तेरे बिन हम अधूरे हैं
बिन मेरे तेरी जिन्दगी अधूरी है....
ये ज़ाम अधूरा है
तुमसे दिल की बात अधूरी है
ये चाँद अधूरा है
ये रात अधूरी है
मचलते जज्बात अधूरे हैं
तरसते ख्वाब अधूरे हैं
तड़पती तन्हाई अधूरी है
दिल की ख्वाहिशें अधूरी है
ये जुस्तजु अधूरी है
उमड़ते अरमान अधूरे हैं
पैगामे-मोहब्बत अधूरी है
तेरे बिन हम अधूरे हैं
बिन मेरे तेरी जिन्दगी अधूरी है....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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