Friday, April 3, 2015

इस इरादे से फलक तक ऊँची उड़ान भरते हैं।



कलम से____

ख़त तेरे आज भी तूफानी मिज़ाज़ रखते हैं
बहुत सभांलके खज़ाने से सिरहाने रखते हैं।

तन्हा चलने का इरादा बनाया है क्यों
हम तो ज़माने को साथ ले के चलते हैं।

गरज़ नहीं मुझे किसी मयख़ाने की
आँखों से अश्कों के पैमाने बरसते हैं।

जब भी उठती है महक तेरी यादों की
सूखे हुये गुलाब किताबों के परीशां बहुत करते हैं।

मिल ही जायेगा इक दिन इस दिल को मुकाम
इस इरादे से फलक तक ऊँची उड़ान भरते हैं।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
— with Puneet Chowdhary.
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