कलम से____
13th April /Kaushambi/Ghaziabad
पतझर के मौसम में कोशिश की थी हंसने की एक बार
मिलता नहीं है मधुमास का रंग हर किसी को बार बार।
मिलता नहीं है मधुमास का रंग हर किसी को बार बार।
बाबज़ूद इसके ज़िदंगी मेरी रहती है क्यों उदास
तेरे ख्यालों की रौशनी सदा है मेरे साथ।
तेरे ख्यालों की रौशनी सदा है मेरे साथ।
ये कोई और बात थी कि तू न सुन पाया
आवाज़ देती रही हमेशा तूझे मेरी हर सांस।
आवाज़ देती रही हमेशा तूझे मेरी हर सांस।
बेईमानों के ही हक़ में होते रहे हैं फ़ैसले
चलते रहे हैं वो चाल ही हमेशा एक खास।
चलते रहे हैं वो चाल ही हमेशा एक खास।
पूछा नहीं क्यों उलझ के रह गया हूँ रिश्तों के जाल में
दम तोड़ती रही है हर बार मेरी वो इक आस।
दम तोड़ती रही है हर बार मेरी वो इक आस।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/
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